9 DEVI FORMS FOR 9 DAYS OF NAVRATRI

नवरात्र की प्रत्येकतिथि के लिए कुछ साधन ज्ञानियो द्वारा नियतकिये गये है

प्रतिपदा - इसेशुभेच्छा कहते है । जो प्रेमजगाती है प्रेम बिना सबसाधन व्यर्थ है , अस्तुप्रेम को अबिचल अडिगबनाने हेतुशैलपुत्री का आवाहन पूजनकिया जाता है । अचलपदार्थो मे पर्वत सर्वाधिक अटल होता है ।

द्वितीया - धैर्यपूर्वकद्वैतबुद्धि का त्याग करकेब्रह्मचर्य का पालन करतेहुएमाँ ब्रह्मचारिणी का पूजनकरना चाहिए ।

तृतीया - त्रिगुणातीत(सत , रज ,तम से परे)होकरमाँ चन्द्रघण्टा का पूजनकरते हुए मनकी चंचलता को बश मेँकरना चाहिए ।

चतुर्थी - अन्तःकरणचतुष्टय मन ,बुद्धि ,चित्त एवं अहंकारका त्याग करते हुए मन,बुद्धि को कूष्माण्डा देवी केचरणोँ मेँ अर्पित करेँ ।


पंचमी - इन्द्रियो के पाँचविषयो अर्थात् शब्द रुपरस गन्ध स्पर्श का त्यागकरते हुएस्कन्दमाता का ध्यान करेँ ।


षष्ठी - काम क्रोध मदमोह लोभ एवं मात्सर्यका परित्याग करकेकात्यायनी देवी का ध्यानकरे ।


सप्तमी - रक्त , रस माँसमेदा अस्थि मज्जा एवंशुक्र इन सप्त धातुओ सेनिर्मित क्षण भंगुर दुर्लभमानव देह को सार्थककरने के लिएकालरात्रि देवी की आराधना करेँ ।


अष्टमी - ब्रह्मकी अष्टधा प्रकृति पृथ्वी जलअग्नि वायु आकाश मनबुद्धि एवं अहंकार से परेमहागौरी के स्वरुपका ध्यान करता हुआब्रह्म से एकाकार होनेकी प्रार्थना करे ।


नवमी -माँ सिद्धिदात्री की आराधना सेनवद्वार वाले शरीरकी प्राप्ति को धन्यबनाता हुआ आत्मस्थहो जाय

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