HINDU GOD SHRI RAMA's VEDIC HOROSCOPE
भगवान श्री रामचन्द्र जी की कुंडली की विशेषता :-
भगवन श्री की कुंडली की निम्न विशेषता है -
१. गजकेसरी योग
२. गुरु , उच्च राशि का
३. चन्द्रमा स्व राशि का लग्न में
४. शनि उच्च राशि का चतुर्थ भाव में
५. मंगल उच्च राशि का ७ वे भाव में
६. शुक्र ९ भाव भाग्य में उच्च राशि मीन का
७. सूर्य १० भाव में उच्च राशि का
कुंडली का विश्लेषण - जिस जातक की कुंडली में लग्न का स्वामी लग्न में होता है तो, वह जातक आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी होकर जीवन में भाग्यवान होकर जीवन में उच्च स्थान पाता है। साथ ही उच्च के गुरु के प्रभाव से जातक में अद्वितीय आकर्षण पैदा हो जाता है। किन्तु इसी गुरु नीच दृष्टि से जातक को दाम्पत्य जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। साथ ही राहु की ५ वी दृष्टि भी दाम्पत्य जीवन में परेशानी पैदा कर रही है। जब कोई ग्रह उच्च राशि का चतुर्थ भाव में होतो , वह जातक जनता में बहुत लोकप्रिय होता है किन्तु पिता के भाव पर नीच दृष्टि से पिता के सुख में कमी पैदा कर देता है। ७ वे भाव में उच्च का मंगल है , किन्तु नीच दृष्टि लग्न पर होने , कुछ ना कुछ कष्ट बना रहता है. १० वे भाव उच्च के सूर्य से प्रबल राजयोग है , किन्तु जन्म स्थान छोड़ने को विवश होना पड़ता है। ९ वे भाव उच्च राशि के शुक्र के कारण श्री भगवान बहुत भाग्यशाली थे। किन्तु नीच दृष्टि छोटे भाई बहनों के भाव पर होने से छोटे भाई के कारण कष्ट भी हुआ।
भगवन श्री की कुंडली की निम्न विशेषता है -
१. गजकेसरी योग
२. गुरु , उच्च राशि का
३. चन्द्रमा स्व राशि का लग्न में
४. शनि उच्च राशि का चतुर्थ भाव में
५. मंगल उच्च राशि का ७ वे भाव में
६. शुक्र ९ भाव भाग्य में उच्च राशि मीन का
७. सूर्य १० भाव में उच्च राशि का
कुंडली का विश्लेषण - जिस जातक की कुंडली में लग्न का स्वामी लग्न में होता है तो, वह जातक आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी होकर जीवन में भाग्यवान होकर जीवन में उच्च स्थान पाता है। साथ ही उच्च के गुरु के प्रभाव से जातक में अद्वितीय आकर्षण पैदा हो जाता है। किन्तु इसी गुरु नीच दृष्टि से जातक को दाम्पत्य जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। साथ ही राहु की ५ वी दृष्टि भी दाम्पत्य जीवन में परेशानी पैदा कर रही है। जब कोई ग्रह उच्च राशि का चतुर्थ भाव में होतो , वह जातक जनता में बहुत लोकप्रिय होता है किन्तु पिता के भाव पर नीच दृष्टि से पिता के सुख में कमी पैदा कर देता है। ७ वे भाव में उच्च का मंगल है , किन्तु नीच दृष्टि लग्न पर होने , कुछ ना कुछ कष्ट बना रहता है. १० वे भाव उच्च के सूर्य से प्रबल राजयोग है , किन्तु जन्म स्थान छोड़ने को विवश होना पड़ता है। ९ वे भाव उच्च राशि के शुक्र के कारण श्री भगवान बहुत भाग्यशाली थे। किन्तु नीच दृष्टि छोटे भाई बहनों के भाव पर होने से छोटे भाई के कारण कष्ट भी हुआ।
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