SATURN IN SIXTH HOUSE
1 छठा भाव रोग भाव है। जब इस भाव या भावेश से शनि का सम्बन्ध बनता है तो वात रोग होता है।
2 लग्नस्थ बृहस्पति पर सप्तमस्थ शनि की दृष्टि वातरोग कारक है।
3 त्रिकोण भावों में या सप्तम में मंगल हो व शनि सप्त्म में हो तो गठिया होता है।
4 शनि क्षीण चंद्र से द्वादश भाव में युति करें तो आथ्र्रराइटिस होता है।
5 छठे भाव में शनि पैरोें में कष्ट देता है।
6 शनि की राहु मंगल से युति एवं सुर्य छठे भाव में हो तो पैरों में विकल होता है।
7 छठे या आठवें भाव में शनि, सुर्य चन्द्र से युति करें तो हाथों में वात विकार के कारण दर्द होता है।
8 शनि लग्नस्थ शुक्र पर दृष्टि करें तो नितम्ब में कष्ट होता है।
9 द्वादश स्थान मंे मंगल शनि की युति वात रोग कारक है।
10 षष्ठेश व अष्टमेश की लग्न में शनि से युति वात रोग कारक है।
11 चंद्र एवं शनि की युति हो एवं शुभ ग्रहों की दृष्टि नहीं हों तो जातक को पैरों में
कष्ट होता हैं।
उपाय ।शनि चालीसा डेली करे और शानिवार को तेल में अपनी छाया देख कर पीपल में अर्पित करे या शानी मंदिर में शं का जाप डेली करे ।लाभ होगा।
2 लग्नस्थ बृहस्पति पर सप्तमस्थ शनि की दृष्टि वातरोग कारक है।
3 त्रिकोण भावों में या सप्तम में मंगल हो व शनि सप्त्म में हो तो गठिया होता है।
4 शनि क्षीण चंद्र से द्वादश भाव में युति करें तो आथ्र्रराइटिस होता है।
5 छठे भाव में शनि पैरोें में कष्ट देता है।
6 शनि की राहु मंगल से युति एवं सुर्य छठे भाव में हो तो पैरों में विकल होता है।
7 छठे या आठवें भाव में शनि, सुर्य चन्द्र से युति करें तो हाथों में वात विकार के कारण दर्द होता है।
8 शनि लग्नस्थ शुक्र पर दृष्टि करें तो नितम्ब में कष्ट होता है।
9 द्वादश स्थान मंे मंगल शनि की युति वात रोग कारक है।
10 षष्ठेश व अष्टमेश की लग्न में शनि से युति वात रोग कारक है।
11 चंद्र एवं शनि की युति हो एवं शुभ ग्रहों की दृष्टि नहीं हों तो जातक को पैरों में
कष्ट होता हैं।
उपाय ।शनि चालीसा डेली करे और शानिवार को तेल में अपनी छाया देख कर पीपल में अर्पित करे या शानी मंदिर में शं का जाप डेली करे ।लाभ होगा।
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